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Sanam त र गम अगर न ह त त शर ब म प त हरज य म नह ह न ह व ब व फ बस वक त न क य ह ना ही साहिर ने कभी अपनी अधूरी चाहत की चाहत छोड़ी और ना ही उसकी ज़िन्दगी इतनी आसान थी की वो सिर्फ अपनी चाहत में डूबा रहे। उसने अपनी मुहब्बत में नाकामी हासिल की पर उससे समाज के आइन में भी ग़म ही ग़म मिले। साहिर ने जितनी शिद्दत से अपनी मोहब्बत निभाई वही शिद्दत उनकी ग़ज़लो और नज़्मों में भी है अगर मोहोब्बत का एहसास चाहिए.